I. औपनिवेशिक कला शिक्षा की स्थिति:
- ब्रिटिश राज में कला शिक्षण एकेडमिक यथार्थवाद पर आधारित था — यानि प्रकृति और मानव आकृति की हूबहू नकल।
- यह शैली भारतीय सांस्कृतिक चेतना और कल्पनाशीलता से असंगत थी।
II. टैगोर का विरोध और दृष्टिकोण:
- टैगोर ने औपनिवेशिक कला प्रणाली को "आत्महीन" कहा।
- उन्होंने तर्क दिया कि कला को आत्म-अन्वेषण और समाज से संवाद का माध्यम होना चाहिए।
- उन्होंने पश्चिमी शैली के अनुकरण के स्थान पर भारतीय परंपरा, प्रतीक और अनुभूति पर बल दिया।
III. कलाभवन की स्थापना और प्रभाव:
- शांतिनिकेतन में 'कलाभवन' (Kala Bhavan) की स्थापना – जहाँ नंदलाल बोस, बिनोद बिहारी मुखर्जी जैसे नव्य कलाकारों को मंच मिला।
- उन्होंने विद्यार्थियों को प्रयोगशीलता, प्रतीकात्मकता और प्रकृति के साथ संवाद सिखाया।
IV. नवीन दिशा और स्वतंत्रता का संदेश:
- टैगोर का नव्य-कला आंदोलन, कला में सांस्कृतिक स्वतंत्रता और औपनिवेशिक मानसिकता के परित्याग का प्रतीक बना।
- यह आंदोलन भारतीय आधुनिक कला आंदोलन का आधारशिला साबित हुआ।
V. निष्कर्ष:
टैगोर ने न केवल औपनिवेशिक कला के ढांचे को चुनौती दी, बल्कि एक ऐसी कला परंपरा की शुरुआत की, जिसमें रचनात्मक स्वतंत्रता और भारतीय चेतना दोनों को स्थान मिला।
