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चोल स्थापत्य को साम्राज्यवादी शक्ति और धार्मिक भक्ति की द्वैत अभिव्यक्ति के रूप में कैसे देखा जा सकता है? (250 शब्द)

22-04-2025

I. राजसत्ता की अभिव्यक्ति:
 

  • मंदिरों को प्रशासनिक केंद्र के रूप में प्रयुक्त किया गया।
    • भूमि दान, व्यापारिक अनुबंध, कर संग्रह की जानकारी मंदिरों की दीवारों पर अंकित।
  • राजाओं ने स्वयं को ईश्वर का प्रतिनिधि बताया — जैसे, "राजराजेश्वर" की उपाधि।
     

II. धार्मिक भक्ति और स्थापत्य:
 

  • मंदिरों में न केवल पूजा स्थल, बल्कि सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र।
  • नटराज, शिव, विष्णु और देवी की मूर्तियाँ – भक्ति आंदोलन के उदय को दिशा दी।
     

III. स्थापत्य में सम्राटों की भूमिका:
 

  • राजराज चोल I – बृहदेश्वर मंदिर के माध्यम से शक्ति का प्रदर्शन।
  • राजेंद्र चोल I – गंगैकोंडचोलपुरम मंदिर से उत्तर में विजय यात्रा का संकेत।
  • मंदिर-निर्माण को शाही कर्तव्य के रूप में प्रस्तुत किया गया।
     

IV. अर्थव्यवस्था और सांस्कृतिक संरक्षण:
 

  • मंदिरों ने स्थानीय शिल्पकारों और कलाकारों को संरक्षण दिया।
  • दान-पत्रिकाओं से पता चलता है कि मंदिरों ने कृषि, शिक्षा और संगीत को पोषित किया।
     

V. निष्कर्ष:
 

चोल स्थापत्य ने सत्ता और धर्म का एक ऐसा तानाबाना बुना जिसमें सम्राटों की महत्ता, समाज की आस्था और संस्कृति की स्थायित्व शक्ति — सब एक साथ समाहित थे।

 

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