हेमा समिति की रिपोर्ट को 2017 में केरल के 'वीमेन इन सिनेमा कलेक्टिव' द्वारा दायर याचिका के आधार पर गठित किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य फिल्म उद्योग में महिलाओं के द्वारा सामना किए जा रहे मुद्दों का अध्ययन करना था। रिपोर्ट का मुख्य लक्ष्य यह था कि फिल्म उद्योग में यौन उत्पीड़न, शोषण और भेदभाव के मामलों को उजागर कर इसके सुधार के लिए सिफारिशें दी जाएं। इस समिति ने 2019 में अपनी रिपोर्ट पेश की, जिसमें फिल्म उद्योग के भीतर महिलाओं की स्थिति और उनके साथ होने वाले भेदभाव के बारे में गंभीर खुलासे किए गए।
रिपोर्ट में मुख्यतः निम्नलिखित मुद्दों को उठाया गया है:
कास्टिंग काउच एक ऐसा शब्द है जो हॉलीवुड में यौन उपकार के लिए फिल्मों में भूमिका देने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है। रिपोर्ट में इसे एक सामान्य प्रथा के रूप में वर्णित किया गया है, जहां फिल्मों में भागीदारी के लिए यौन गतिविधियों को एक प्रकार की शर्त के रूप में देखा जाता है। जस्टिस हेमा ने इसे फिल्म उद्योग की मौजूदा व्यवस्था का एक शोषणकारी पहलू बताया और इसे खत्म करने के लिए ठोस कदम उठाने की सिफारिश की है।
रिपोर्ट में पेशेवर महिला कार्यकर्ताओं के लिए निम्नलिखित सिफारिशें की गई हैं:
सरकार ने उत्पीड़न के आरोपों की छानबीन के लिए एक विशेष जांच दल गठित करने का निर्णय लिया है। हालांकि, सरकार ने रिपोर्ट में सुझाए गए प्रत्येक फिल्म प्रोजेक्ट के लिए आंतरिक शिकायत समितियों को खत्म करने की सिफारिश को अनदेखा किया है। इसके बावजूद, सरकार को उन सुझावों पर कदम उठाने चाहिए जो फिल्म उद्योग को पेशेवर बनाने और संरचनात्मक सुधारों के लिए आवश्यक हैं।
संरचनात्मक सुधारों में निम्नलिखित बिंदुओं को शामिल किया गया है:
जस्टिस हेमा की रिपोर्ट ‘#मी-टू’ आंदोलन की तरह एक उत्प्रेरक के रूप में काम कर सकती है। यह महिलाओं को बोलने और अपने अनुभव साझा करने के लिए प्रेरित कर सकती है, जिससे फिल्म उद्योग में उत्पीड़न और भेदभाव के खिलाफ एक व्यापक जन जागरूकता और कार्रवाई शुरू हो सकती है।
कानूनी पहल में निम्नलिखित कदम शामिल किए जा सकते हैं:
महिलाओं के लिए आवश्यक सुविधाओं का अभाव महत्वपूर्ण मुद्दा है क्योंकि यह उनकी सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम के दौरान निजता को प्रभावित करता है। उचित शौचालयों, कपड़े बदलने के कमरों और सुरक्षित परिवहन की कमी से महिलाओं को असुविधा और खतरे का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके काम की गुणवत्ता और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
फिल्म उद्योग के भीतर और बाहर की ताकतवर व्यक्तियों का दबदबा अक्सर शोषण और भेदभाव की प्रथाओं को बढ़ावा देता है। ये व्यक्ति अपनी स्थिति और संसाधनों का उपयोग करके कमजोर या अवांछनीय मुद्दों को दबाने का प्रयास करते हैं, जिससे वास्तविक समस्या का समाधान नहीं हो पाता और एक प्रभावी सुधार की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होती है।
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