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कर्णाटक संगीत के ऐतिहासिक विकास और त्रिमूर्ति की भूमिका का विवेचन कीजिए। (250 शब्द)

24-04-2025

 

I. ऐतिहासिक विकास:
 

  • वैदिक युग में सामगान के रूप में संगीत की जड़ें।
  • संघम साहित्य में काव्य व राग का उल्लेख।
  • भक्ति आंदोलन (7वीं-12वीं सदी) में आलवार व नायनार संतों ने धार्मिक काव्य और संगीत को जोड़ दिया।
  • विजयनगर काल (14वीं-16वीं सदी) – संरक्षक राजाओं और मंदिरों में संगीत का उत्कर्ष।
     

II. कर्णाटक संगीत की त्रिमूर्ति:
 

  1. त्यागराज (1767-1847):
    • रामभक्ति पर आधारित हजारों कृत्तियाँ।
    • “Endaro Mahanubhavulu” जैसी महान रचनाएँ।
       
  2. मुत्तुस्वामी दीक्षितर (1775–1835):
    • संस्कृत में रचनाएँ, राग-संगठन में नवाचार।
    • देवी, गणपति, विष्णु को समर्पित रचनाएँ।
       
  3. श्याम शास्त्री (1762–1827):
    • ताल जटिलता और भाव-प्रदर्शन में निपुण।
    • देवी कामाक्षी की स्तुति पर केंद्रित रचनाएँ।
       

III. आधुनिक योगदान:
 

  • एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी, सेम्मंगुड़ी श्रीनिवास अय्यर, टी. एन. कृष्णन आदि ने कर्णाटक संगीत को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई।

IV. निष्कर्ष:
 

कर्णाटक संगीत केवल कला नहीं, आध्यात्मिक चेतना का माध्यम है। इसकी त्रिमूर्ति ने इसे शास्त्र, भक्ति और सौंदर्य का संगम बनाकर विश्व मंच तक पहुँचाया।

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