I. प्रमुख विशेषताएँ:
- द्रविड़ शैली का उत्कर्ष:
- ऊँचे विमानों (Vimanas) की उपस्थिति।
- मंदिरों का मुख्य भाग — गर्भगृह, अंतराल, मंडप, गोपुरम।
- राजसत्ता की अभिव्यक्ति:
- मंदिर केवल धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि प्रशासनिक और सांस्कृतिक केंद्र भी थे।
- सम्राटों द्वारा मंदिर निर्माण से राजधर्म और राजवैभव को प्रकट किया गया।
- पत्थर की विशाल प्रतिमाएं:
- नटराज (शिव) की कांस्य प्रतिमाएं — चोलों की उत्कृष्ट मूर्तिकला।
II. प्रमुख उदाहरण:
- बृहदेश्वर मंदिर, तंजावुर:
- राजा राजराज चोल द्वारा निर्मित (11वीं सदी)।
- 216 फीट ऊँचा विमान।
- ग्रेनाइट से निर्मित विशाल शिवलिंग और नंदी।
- गंगैकोंडचोलपुरम मंदिर:
- राजेंद्र चोल-I द्वारा निर्मित।
- स्थापत्य में परिपक्वता और गहराई।
- एयरावतेश्वर मंदिर, दारासुरम:
- यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल।
- अद्भुत कलात्मक नक्काशी।
III. मूर्तिकला व चित्रकला:
- कांस्य प्रतिमाएं – "त्रिभंग मुद्रा", सौंदर्य और भक्ति का मिश्रण।
- भित्ति चित्रों में धार्मिक आख्यानों की चित्रण।
IV. निष्कर्ष:
चोल स्थापत्य दक्षिण भारत की सांस्कृतिक पहचान का आधार बना, जिसने बाद की शताब्दियों में मंदिर वास्तुकला की दिशा तय की।
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